
देश की सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने एक अहम फैसले में आधार कार्ड को उम्र निर्धारण का निर्णायक दस्तावेज मानने से इनकार कर दिया है। यह फैसला मोटर दुर्घटना से जुड़े एक केस के संदर्भ में दिया गया, जहां मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण (Motor Accident Claims Tribunal – MACT) के निर्णय को सुप्रीम कोर्ट ने बरकरार रखते हुए हाईकोर्ट के आदेश को खारिज कर दिया। इस निर्णय से यह स्पष्ट होता है कि न्यायिक मामलों में केवल आधार कार्ड के आधार पर व्यक्ति की उम्र निर्धारित नहीं की जा सकती।
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Supreme Court का यह फैसला स्पष्ट करता है कि न्यायिक फैसलों में केवल आधार कार्ड पर भरोसा नहीं किया जा सकता। किसी भी व्यक्ति की उम्र या अन्य व्यक्तिगत विवरणों की पुष्टि के लिए वैध और पुष्ट दस्तावेज जरूरी हैं। यह निर्णय न केवल मुआवजा संबंधित मामलों को प्रभावित करेगा बल्कि विभिन्न सरकारी और गैर-सरकारी प्रक्रियाओं में भी आधार कार्ड की सीमाओं को स्पष्ट करता है।
हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट ने क्यों खारिज किया
इस मामले में एक सड़क दुर्घटना के बाद मुआवजे के लिए याचिका दाखिल की गई थी। दावेदारों ने दावा किया कि मृतक की उम्र 20 वर्ष थी और इसी के आधार पर मुआवजे की गणना की जानी चाहिए। इसके समर्थन में आधार कार्ड को साक्ष्य के रूप में पेश किया गया। हाईकोर्ट (High Court) ने आधार कार्ड में दर्ज उम्र को स्वीकार करते हुए MACT के आदेश को पलट दिया था।
हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के इस निर्णय पर सहमति नहीं जताई। शीर्ष अदालत ने स्पष्ट किया कि आधार कार्ड, जो स्वयं घोषणात्मक जानकारी के आधार पर बनता है, उसे कानूनी रूप से उम्र का अंतिम प्रमाण नहीं माना जा सकता, विशेष रूप से जब वह अन्य दस्तावेजों से मेल न खाता हो।
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एमएसीटी का निर्णय क्यों माना गया उचित
Motor Accident Claims Tribunal (MACT) ने इस मामले में पोस्टमार्टम रिपोर्ट और अन्य चिकित्सा साक्ष्यों के आधार पर मृतक की उम्र 25 वर्ष मानी थी। MACT का मानना था कि आधार कार्ड की जानकारी अन्य साक्ष्यों से मेल नहीं खा रही थी, इसलिए उसे एकमात्र आधार नहीं बनाया जा सकता। सुप्रीम कोर्ट ने MACT की इस दलील को तर्कसंगत और न्यायसंगत माना।
इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने यह भी रेखांकित किया कि मुआवजे की गणना मृतक की उम्र, आय और आश्रितों की संख्या के आधार पर की जाती है। यदि उम्र को लेकर ही भ्रम हो, तो सबसे विश्वसनीय और पुष्ट साक्ष्य को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
आधार कार्ड की वैधता पर सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आधार कार्ड का मुख्य उद्देश्य व्यक्ति की पहचान सुनिश्चित करना है, न कि जन्म प्रमाणपत्र के रूप में काम करना। चूंकि आधार कार्ड बनाते समय व्यक्ति स्वयं ही अपनी जानकारी देता है, इसलिए वह जन्म की तारीख का पूर्ण और प्रमाणिक दस्तावेज नहीं हो सकता। कोर्ट ने इस मामले में साक्ष्य अधिनियम के नियमों का भी हवाला दिया, जिसमें यह स्पष्ट है कि दस्तावेज की विश्वसनीयता अन्य साक्ष्यों से पुष्ट होनी चाहिए।
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क्या हो सकती हैं इसके दूरगामी कानूनी व्याख्याएं
इस फैसले के बाद यह संभावना है कि भविष्य में बीमा दावों (Insurance Claims), आवासीय प्रमाण पत्रों (Residential Certificates), और अन्य कानूनी प्रक्रियाओं में आधार कार्ड को अकेला प्रमाण मानने की प्रवृत्ति पर रोक लगेगी। विशेष रूप से मुआवजा (Compensation) मामलों में अदालतें अब और अधिक साक्ष्य मांग सकती हैं। यह फैसला न्यायिक पारदर्शिता और तथ्यों की पुष्टि के संदर्भ में एक मिसाल बनेगा।
मुआवजा तय करने के लिए उम्र का महत्व
कानून के तहत, सड़क दुर्घटनाओं में मुआवजा तय करने का आधार केवल मौत या चोट नहीं होता, बल्कि मृतक की आयु, आय और आश्रितों की स्थिति को भी ध्यान में रखा जाता है। अगर मृतक की उम्र 20 साल मानी जाती है तो मुआवजे की गणना अलग होगी, जबकि 25 साल की उम्र मानने पर यह रकम बदल सकती है। इसी कारण सुप्रीम कोर्ट ने MACT के उस फैसले को बरकरार रखा जिसमें 25 वर्ष की उम्र मानकर मुआवजा तय किया गया था।