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यूपी में बिजली होगी और महंगी! नया टैरिफ प्लान जारी, अब इतना बढ़ेगा आपका बिल

उत्तर प्रदेश में मल्टी ईयर टैरिफ डिस्ट्रीब्यूशन रेगुलेशन-2025 के लागू होने से बिजली दरों में 15-20% की संभावित बढ़ोतरी हो सकती है। स्मार्ट मीटर की कमी, बिजली चोरी का बोझ, और निजीकरण की संभावनाएं इस पूरे परिदृश्य को जटिल बना रही हैं। उपभोक्ताओं को आने वाले वर्षों में इन बदलावों के लिए तैयार रहना होगा।

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यूपी में बिजली होगी और महंगी! नया टैरिफ प्लान जारी, अब इतना बढ़ेगा आपका बिल
यूपी में बिजली होगी और महंगी

उत्तर प्रदेश में बिजली दरें एक बार फिर से चर्चा में हैं, और इस बार मामला और भी बड़ा है। मल्टी ईयर टैरिफ डिस्ट्रीब्यूशन रेगुलेशन-2025 के लागू होने के बाद यह स्पष्ट हो गया है कि वर्ष 2025-26 से राज्य में बिजली की दरों में 15 से 20 प्रतिशत तक की बढ़ोतरी हो सकती है। यह बदलाव विद्युत नियामक आयोग द्वारा तय की गई नई व्यवस्था के तहत अगले पांच वर्षों (2025 से 2029 तक) लागू रहेगा, जो बिजली वितरण की समग्र संरचना को प्रभावित करेगा।

नए रेगुलेशन का प्रभाव और एआरआर का आंकलन

इस मल्टी ईयर टैरिफ फ्रेमवर्क के अनुसार, अब बिजली दरों को पांच वर्षों के लिए एक स्थायी ढांचे में तय किया जाएगा। पावर कारपोरेशन की बिजली वितरण कंपनियों ने चार महीने पहले जो एआरआर (Annual Revenue Requirement) का प्रस्ताव दिया था, उसमें 1.16 लाख करोड़ रुपये की राशि का अनुमान जताया गया था। इस प्रस्ताव के आधार पर आयोग अब जनसुनवाई की प्रक्रिया शुरू करेगा, जिसके बाद आगामी बिजली दरें तय की जाएंगी।

मौजूदा बिजली दरों की तुलना में एआरआर में करीब 13,000 करोड़ रुपये का घाटा दर्शाया गया है, जिसके आधार पर अनुमान लगाया जा रहा है कि दरों में 15-20 प्रतिशत तक की बढ़ोतरी निश्चित है। यह वृद्धि पांच वर्षों में पहली बार इतनी व्यापक हो सकती है।

स्मार्ट मीटर की अनुपस्थिति और TOD टैरिफ की जटिलता

नई दर प्रणाली को लागू करने में सबसे बड़ी बाधा है स्मार्ट मीटर का व्यापक स्तर पर अभाव। टाइम ऑफ डे (TOD) टैरिफ, जिसमें दिन और रात के समय की दरें अलग होती हैं, को बिना स्मार्ट मीटर के लागू करना संभव नहीं है। पावर कारपोरेशन पहले ही स्पष्ट कर चुका है कि राज्यभर में स्मार्ट मीटर लगाने में वर्ष 2027-28 तक का समय लग सकता है। इसलिए केंद्र सरकार की TOD नीति को अभी प्रदेश में लागू नहीं किया जा सकेगा।

TOD टैरिफ लागू होने के बाद बिजली दरें समय के अनुसार भिन्न होंगी, जिससे यह किसी समय पर 10 से 20 प्रतिशत तक सस्ती या महंगी हो सकती है। हालांकि उद्योगों में यह प्रणाली पहले से लागू है, लेकिन घरेलू और छोटे उपभोक्ताओं को फिलहाल समान दरें ही दी जाएंगी।

लाइन हानियों और बिजली चोरी का भार उपभोक्ताओं पर

नई नीति में बिजली चोरी और लाइन हानियों को लेकर भी बड़ा बदलाव किया गया है। अब तक बिजली कंपनियों के घाटे का भार उपभोक्ताओं पर नहीं डाला जाता था, लेकिन RDS Scheme (Revamped Distribution Sector Scheme) के तहत लाइन लॉसेस का असर अब सीधे बिजली दरों पर पड़ेगा। यानी यदि कहीं चोरी या तकनीकी हानियां होती हैं, तो उस क्षेत्र के उपभोक्ताओं को अधिक दर चुकानी होगी।

हालांकि आयोग ने इस बार स्पष्ट कर दिया है कि कंपनियों को केवल उन्हीं खर्चों की अनुमति दी जाएगी जो वास्तविक और अनुमन्य हैं। इससे अनावश्यक व्यय पर रोक लगेगी और कंपनियों की वित्तीय स्थिति में सुधार आने की उम्मीद जताई जा रही है।

निजीकरण पर फिलहाल विराम, लेकिन खतरा बरकरार

रेगुलेशन के प्रारंभिक मसौदे में भविष्य में निजीकरण की संभावना को शामिल किया गया था, लेकिन उपभोक्ता परिषद की आपत्तियों के चलते अंतिम रेगुलेशन से इस बिंदु को हटा दिया गया। परिषद के अध्यक्ष अवधेश वर्मा ने साफ किया कि यदि भविष्य में आयोग द्वारा निजीकरण की दिशा में कोई भी कदम उठाया गया, तो उसका कड़ा विरोध किया जाएगा।

फिलहाल 42 जिलों की बिजली वितरण प्रणाली को निजी हाथों में सौंपने की योजना को रोक दिया गया है। यह उपभोक्ताओं के लिए राहत की बात है, लेकिन वर्मा के अनुसार, सतर्क रहने की जरूरत अब भी बनी हुई है।

उपभोक्ताओं पर वित्तीय बोझ और संघर्ष की घोषणा

बिजली दरों में संभावित वृद्धि को लेकर उपभोक्ता परिषद ने संघर्ष की घोषणा की है। अवधेश वर्मा ने कहा कि यदि दरों में यह भारी बढ़ोतरी लागू होती है, तो इसका असर राज्य के करोड़ों उपभोक्ताओं, खासकर गरीब वर्ग पर सीधा पड़ेगा। साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि बिजली कंपनियों के पास अभी भी 3 से 4 हजार करोड़ रुपये का सरप्लस मौजूद है, जो उपभोक्ताओं के हित में उपयोग किया जाना चाहिए।

पूर्व में आयोग ने स्पष्ट किया था कि बिजली चोरी का नुकसान उपभोक्ताओं से नहीं वसूला जाएगा, लेकिन इस बार की नीति में बदलाव के चलते उपभोक्ता सीधे तौर पर प्रभावित होंगे।

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