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किराएदार को बेदखल करने के हक को लेकर कोर्ट ने सुनाया फैसला, किरायेदार नहीं कर सकते ये काम, हो जाएं सावधान

क्या आप भी किराए के मकान में रहते हैं? अब एक कोर्ट ऑर्डर से आपकी मुश्किलें बढ़ सकती हैं! जानिए दिल्ली रेंट कंट्रोल एक्ट के तहत हाई कोर्ट ने क्यों कहा कि किराएदार बेदखली पर अब नहीं कर सकते अपील। पूरा मामला चौंकाने वाला है

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किराएदार को बेदखल करने के हक को लेकर कोर्ट ने सुनाया फैसला, किरायेदार नहीं कर सकते ये काम, हो जाएं सावधान
किराएदार को बेदखल करने के हक को लेकर कोर्ट ने सुनाया फैसला, किरायेदार नहीं कर सकते ये काम, हो जाएं सावधान

दिल्ली हाई कोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण निर्णय में स्पष्ट किया है कि दिल्ली रेंट कंट्रोलर (Delhi Rent Controller) एक्ट, 1958 की धारा 25बी (8) के तहत किराएदार को बेदखली आदेश के खिलाफ अपील करने का अधिकार प्राप्त नहीं है। यह टिप्पणी जस्टिस मनोज जैन ने उस समय की, जब उन्होंने किराएदारों की उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें एडिशनल रेंट कंट्रोलर के आदेश को चुनौती दी गई थी।

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दिल्ली हाई कोर्ट का यह फैसला न केवल कानूनी दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि इससे यह भी स्पष्ट होता है कि कानून की मंशा मकान मालिक और किराएदार के बीच संतुलन बनाए रखना है। लेकिन जब बात मकान मालिक की वास्तविक आवश्यकता की हो, तो कानून त्वरित कार्रवाई को प्राथमिकता देता है।

क्या था पूरा मामला

इस केस की शुरुआत साल 2012 में हुई थी, जब एक मकान मालिक ने अपनी संपत्ति को खाली कराने के लिए किराएदारों के खिलाफ याचिका दायर की थी। मकान मालिक ने कोर्ट से कहा कि उन्हें अपनी प्रॉपर्टी की आवश्यकता है, इसलिए किराएदारों को बेदखल किया जाए। किराएदारों की ओर से जवाब दायर करने की मांग की गई थी, जिसे एडिशनल रेंट कंट्रोलर ने स्वीकार कर लिया और उन्हें अपना पक्ष रखने की अनुमति दे दी।

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इस आदेश से असंतुष्ट होकर मकान मालिक ने दिल्ली हाई कोर्ट का रुख किया। 14 फरवरी, 2017 को हाई कोर्ट ने रेंट कंट्रोलर के आदेश को निरस्त कर दिया और किराएदारों को प्रॉपर्टी खाली करने का आदेश जारी कर दिया।

पुनः न्याय की उम्मीद में हाई कोर्ट पहुँचे किराएदार

हालांकि, किराएदारों ने इसके बाद भी हार नहीं मानी और 10 मार्च 2022 को एडिशनल रेंट कंट्रोलर द्वारा पारित आदेश को चुनौती देते हुए एक रिविजन पिटिशन दायर की। यह याचिका दिल्ली रेंट कंट्रोल एक्ट की धारा 38 के तहत दायर की गई थी, जिसमें यह दावा किया गया था कि उन्हें अपील का अधिकार प्राप्त है।

मगर जस्टिस मनोज जैन ने यह स्पष्ट कर दिया कि जब मामला धारा 25बी के तहत आता है, जोकि मकान मालिक की “जरूरत” के आधार पर बेदखली से संबंधित है, तब किराएदार को कोई रिविजन या अपील का अधिकार नहीं दिया गया है। उन्होंने कहा कि इस विशेष प्रक्रिया का उद्देश्य त्वरित न्याय देना है, ताकि मकान मालिक को उनकी आवश्यकता अनुसार न्याय मिल सके।

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कोर्ट का कानूनी आधार

हाई कोर्ट ने अपने निर्णय में कहा कि Delhi Rent Control Act, 1958 की धारा 25बी (8), स्पष्ट रूप से कहती है कि रेंट कंट्रोलर के निर्णय के खिलाफ कोई अपील या पुनर्विचार की अनुमति नहीं है। इस प्रकार, धारा 38 के तहत भी कोई राहत नहीं मिल सकती।

यह भी कहा गया कि इस विशेष प्रक्रिया को कानून में इसलिए शामिल किया गया है ताकि मकान मालिकों को गैर-जरूरी देरी से बचाया जा सके। कोर्ट ने टिप्पणी की कि यदि ऐसे मामलों में अपील की अनुमति दी जाए, तो इससे धारा 25बी की मूल भावना ही नष्ट हो जाएगी।

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कोर्ट की टिप्पणी का असर

इस निर्णय से उन मामलों पर सीधा प्रभाव पड़ेगा, जहां मकान मालिक व्यक्तिगत आवश्यकता के आधार पर प्रॉपर्टी खाली कराने की मांग करते हैं। अब यदि रेंट कंट्रोलर की ओर से आदेश आ जाता है, तो किराएदारों के पास अपील करने का विकल्प सीमित हो जाएगा।

यह फैसला रियल एस्टेट और किराया विवादों से जुड़े मामलों में एक नज़ीर बन सकता है। इससे यह भी संकेत मिलता है कि अदालत अब ऐसे मामलों में किराएदारों को बेवजह की कानूनी प्रक्रियाओं में उलझने से रोकना चाहती है, खासकर जब मकान मालिक की वास्तविक जरूरत कोर्ट में प्रमाणित हो चुकी हो।

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