
MP New Collector Guideline इस बार फिर से मध्यप्रदेश में संपत्ति की खरीदी-बिक्री महंगी करने जा रही है। वर्ष 2025-26 के लिए नई कलेक्टर गाइडलाइन में औसतन 8% से 10% तक की वृद्धि प्रस्तावित है। राजधानी भोपाल में यह वृद्धि औसतन 14% तक हो सकती है, जबकि आर्थिक राजधानी इंदौर में यह आंकड़ा 30% तक पहुंच गया है। इन प्रस्तावों को केंद्रीय मूल्यांकन बोर्ड को भेजा गया है और बोर्ड की मंजूरी के बाद यह नई गाइडलाइन आगामी 1 अप्रैल से पूरे प्रदेश में लागू हो जाएगी।
यह सिलसिला नया नहीं है। बीते वर्ष 2024-25 की गाइडलाइन में भी 7% की औसत बढ़ोतरी देखी गई थी। मगर इस बार आम जनता की जेब पर और भी गहरा असर पड़ने वाला है। सिर्फ दरें नहीं, बल्कि साथ लागू होने वाले छुपे हुए उपबंध भी बिना किसी जन-सुनवाई के हर साल प्रभावी हो जाते हैं। यही वजह है कि कृषि भूमि की रजिस्ट्री लगभग दोगुनी तो वहीँ फ्लैट्स की रजिस्ट्री लगभग डेढ़ गुनी तक महंगी हो गई है। साथ ही स्टांप शुल्क (Stamp Duty) की दरें भी देश में सबसे ऊंचे स्तर पर बनी हुई हैं।
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने ‘एमपी सड़क विकास निगम बनाम विंसेंट डेनियल’ मामले में सुनवाई करते हुए अहम टिप्पणी दी। अदालत ने स्पष्ट किया कि सर्किल रेट या कलेक्टर गाइडलाइन को वैज्ञानिक, विशेषज्ञ-आधारित पद्धति से तय किया जाना चाहिए, जिससे वे वास्तविक बाजार मूल्य (Market Value) को प्रतिबिंबित करें। कोर्ट ने इस पर भी जोर दिया कि दरों को कृत्रिम रूप से न बढ़ाया जाए।
इस निर्णय पर क्रेडाई भोपाल (CREDAI Bhopal) के अध्यक्ष मनोज मीक ने संतोष जाहिर किया और कहा कि यह मांग वे वर्षों से कर रहे हैं और अब सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी इस मांग को वैधानिक बल प्रदान करती है।
जनता पर दोहरी मार
दरअसल, कलेक्टर गाइडलाइन में हर बार सिर्फ दरें ही नहीं बढ़तीं, बल्कि कई ऐसे उपबंध भी प्रभावी हो जाते हैं जिनकी जानकारी आम जनता को नहीं होती। इन उपबंधों पर कोई जन-सुनवाई नहीं होती और न ही इन पर आपत्तियां आमंत्रित की जाती हैं।
क्रेडाई प्रदेश अध्यक्ष धीरेश खरे कहते हैं, “हम हर साल आपत्ति दर्ज करते हैं, लेकिन न सुनवाई होती है, न बदलाव। सरकार को दरें बढ़ाने की प्रक्रिया को पारदर्शी और वैज्ञानिक बनाना चाहिए।”
जिलों की गाइडलाइन
इस बार सभी जिलों की गाइडलाइन सॉफ्टवेयर आधारित विश्लेषण के आधार पर आ रही हैं। जिलों की मूल्यांकन समितियां पूरे साल हुई रजिस्ट्री डेटा और स्थानीय सर्वे के आधार पर प्रस्ताव बनाती हैं, जिन्हें केंद्रीय मूल्यांकन बोर्ड अंतिम निर्णय के लिए देखता है। हालांकि इसमें भी अक्सर मूल्यांकन का असंतुलन देखने को मिलता है, जिससे कुछ क्षेत्रों में गाइडलाइन रेट्स वास्तविक बाजार मूल्य से कई गुना अधिक हो जाते हैं।