
सड़क हादसों में लापरवाही के कानूनी मानकों को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण दिशा-निर्देश जारी किया है, जो सड़क सुरक्षा और मुआवज़ा दावों के क्षेत्र में दूरगामी असर डालेगा। हाल ही में दिए गए निर्णय में शीर्ष अदालत ने स्पष्ट किया कि केवल लर्नर लाइसेंस (Learner License) होना, किसी सड़क दुर्घटना में लापरवाही (Negligence) सिद्ध करने के लिए पर्याप्त नहीं है। यह ऐतिहासिक फैसला उस मामले में सुनाया गया जिसमें एक IAS अधिकारी को 25 साल पुराने एक हादसे में गंभीर रूप से विकलांग होने के बाद पूरा ₹16 लाख का मुआवज़ा देने का आदेश दिया गया।
यह मामला श्रीकृष्ण कांत सिंह बनाम ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड एवं अन्य [सिविल अपील संख्या ___ / 2025 @ SLP (C) No. 12459 / 2019] के रूप में दर्ज था, और इसे 25 मार्च 2025 को जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस के. विनोद चंद्रन की पीठ ने निर्णयित किया।
पृष्ठभूमि: एक संघर्ष, जो प्रेरणा बन गया
वर्ष 1999 में श्रीकृष्ण कांत सिंह, जो उस समय एक युवा ब्लॉक विकास अधिकारी (BDO) के रूप में तैनात थे, एक स्कूटर की पिछली सीट पर सवार होकर यात्रा कर रहे थे। तभी एक ट्रेलर से टकराकर उनकी ज़िंदगी हमेशा के लिए बदल गई। इस भीषण हादसे में उनके दोनों पैर काटने पड़े—एक घुटने के ऊपर से और दूसरा नीचे से। फिर भी, सिंह ने कभी हार नहीं मानी और अपने संघर्ष से IAS अधिकारी का पद हासिल किया। लेकिन इस दुर्घटना में न्याय पाने की लड़ाई उन्हें 25 वर्षों तक लड़नी पड़ी।
निचली अदालतों की स्थिति
श्रीकृष्ण कांत सिंह ने मोटर वाहन अधिनियम, 1988 की धारा 166 के अंतर्गत ₹16 लाख मुआवज़े की मांग की थी। लेकिन मोटर एक्सीडेंट क्लेम्स ट्रिब्यूनल ने उन्हें केवल ₹7.5 लाख की मंजूरी दी, यह मानते हुए कि ट्रेलर चालक 60% और स्कूटर चालक 40% दोषी था। उनका आधार यह था कि स्कूटर चालक के पास सिर्फ लर्नर लाइसेंस था। हाई कोर्ट ने इस निर्णय को बरकरार रखा और साथ ही यह अनुमान लगाया कि सिंह ने स्वयं स्कूटर की पिछली सीट पर बैठने का आग्रह किया होगा—हालांकि, इसका कोई प्रत्यक्ष साक्ष्य नहीं था।
सुप्रीम कोर्ट की दृष्टि
सुप्रीम कोर्ट में सिंह की ओर से पेश हुए अधिवक्ता कुणाल चटर्जी ने यह स्पष्ट किया कि इंश्योरेंस कंपनी ने कभी भी “सह-लापरवाही” (Contributory Negligence) का तर्क ट्रिब्यूनल में प्रस्तुत नहीं किया। साथ ही, FIR, पुलिस जांच और चार्जशीट में ट्रेलर चालक को ही मुख्य दोषी माना गया था।
इंश्योरेंस कंपनी की तरफ से अधिवक्ता अमित कुमार सिंह ने तर्क दिया कि स्कूटर चालक को पिछली सवारी ले जाने की अनुमति नहीं थी और सिंह, एक वरिष्ठ अधिकारी होते हुए, यह जानते थे। उन्होंने यह भी दावा किया कि मेडिकल बिल बाद में पेश किए गए, इसलिए उन्हें अस्वीकार किया जाना चाहिए।
लेकिन न्यायालय ने यह रेखांकित किया कि ड्राइविंग लाइसेंस का न होना, चाहे वह अपराध हो, इसका अर्थ यह नहीं कि दुर्घटना में लापरवाही का दोष केवल इसी आधार पर तय किया जा सकता है। अदालत ने अपने निर्णय में स्पष्ट कहा कि:
“सावधानी की कमी और कानूनी लापरवाही में फर्क है।”
पूर्ण ₹16 लाख मुआवज़ा और संवेदनशील दृष्टिकोण
अंततः सुप्रीम कोर्ट ने ट्रिब्यूनल और हाई कोर्ट दोनों के निर्णयों को पलटते हुए श्रीकृष्ण कांत सिंह को पूरे ₹16 लाख का मुआवज़ा देने का आदेश दिया, जिसमें मेडिकल खर्च, कृत्रिम अंग, स्थायी विकलांगता के कारण असुविधा और सहायक की आवश्यकता को ध्यान में रखा गया।
अदालत ने इस बात को भी रेखांकित किया कि सिंह के IAS बनने से यह नहीं माना जा सकता कि उनकी विकलांगता का प्रभाव समाप्त हो गया। न्यायालय ने यह संवेदनशील टिप्पणी की:
“इस तर्क से सिर्फ आय की हानि पर असर पड़ता है, लेकिन स्थायी विकलांगता के लिए मुआवज़ा आवश्यक है।”
इसके साथ ही, अदालत ने आदेश दिया कि यह राशि मूल ट्रिब्यूनल निर्णय की तिथि से 7% वार्षिक ब्याज के साथ दो महीने के भीतर सिंह के बैंक खाते में जमा की जाए।